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Wednesday, January 27, 2010

सिक्किमः कंचनजंघा की गोद में बसा स्वर्ग (जनवरी 2006)

छोटा सा लेकिन प्राकृतिक दृष्टि से बेहद खूबसूरत राज्य सिक्किम हिमालय के ठीक पूर्वी छोर पर स्थित है। हिमालय से इसकी नजदीकी इतनी ज्यादा है कि इस पर दुनिया की तीसरी सबसे ऊंची चोटी कंचनजंघा (8598 मीटर) की छत्रछाया मानी जाती है। यही वजह है कि सिक्किम कंचनजंघा को देवता की तरह पूजता है। प्राकृतिक रूप से भरा-पूरा और राजनीतिक दृष्टि से शांत यह राज्य हाल के सालों में बड़ी तेजी से पर्यटकों के प्रमुख आकर्षण के रूप में उभरा है।


सिक्किम के बारे में एक रोचक बात यह है कि यहां समुद्र तल से 224 मीटर से लेकर 8590 मीटर तक की ऊंचाई वाले स्थान है। बर्फीली चोटियां हैं तो घने जंगल भी। धान के लहलहाते खेत हैं और उछलती-कूदती नदियां भी। इसलिए यहां वनस्पति, फल-फूलों, वन्य प्राणियों आदि की जो जैव-विविधता देखने को मिलती है, वह बड़ी दुर्लभ है।

राज्य चार जिलों में बंटा हुआ है और चारों के नाम चार दिशाओं पर रखे गए हैं। राजधानी गंगटोक प्रदेश पूर्वी जिले का प्रशासनिक मुख्यालय भी है। राजधानी गंगटोक की आबादी 50 हजार के आसपास है। शहर के देवराली इलाके में स्थित रोपवे पर्यटकों के लिए अतिरिक्त आकर्षण है।

वन्य प्राणी : दुनिया में कहीं भी इतने छोटे इलाके में इतनी तरह के जीव-जंतु देखने को नहीं मिलेंगे। यहां तक कि उत्तर के बर्फीले रेगिस्तान में भी जंगली बत्तख व खच्चर घूमते मिल जाएंगे। यहां पंछियों की पांच सौ से ज्यादा किस्में हैं जिनमें दस फुट के डैने वाले विशालकाय दाढ़ी वाले गिद्ध से लेकर कुछ इंच बड़ी फुदकी तक सब शामिल हैं। इसके अलावा सिक्किम में 600 से ज्यादा किस्म की तितलियां है जिनमें से कई लुप्तप्राय हैं। जंगलों में बार्किग डियर मिलेंगे तो उनके साथ रेड पांडा भी जो राज्य का राजकीय पशु है। ऊंचाई वाले इलाकों में नीली भेड़ जिसे भराल कहा जाता है, तिब्बती जंगली खच्चर यानी कयांग और हिमालयन काला भालू मिल जाता है।

वनस्पति : सिक्किम का स्थानीय नाम डेनजोंग का अर्थ होता है चावल की घाटी। जाहिर है, चावल यहां की मुख्य फसल है। लेकिन सिक्किम जिस चीज के लिए जाना जाता है, वह है यहां के विश्व प्रसिद्ध ऑर्किड जिनकी राज्य में 450 से ज्यादा किस्म पाई जाती हैं। यानी यहां आपको हर रंग के ऑर्किड मिलेंगे। डेंड्रोबियम फैमिली का नोबल ऑर्किड यहां का राजकीय फूल है। इसके अतिरिक्त यहां दस हजार फुट की ऊंचाई पर मिलने वाले रोडोडेंड्रोन की लगभग 36 किस्म पाई जाती हैं।

यूं तो सिक्किम में इतनी सांस्कृतिक बहुलता और प्राकृतिक विविधता है कि पर्यटन का मजा उठाने वालों के लिए नजारों की कोई कमी नहीं है। सुकून तलाशने वालों के लिए शांति है और रोमांच खोजने वालों के लिए बेशुमार चुनौतियां।

राफ्टिंग : रोमांच के शौकीन लोगों के लिए इससे बेहतर कुछ नहीं हो सकता। तीस्ता का प्रवाह मानो एक आमंत्रण सा देता है। नदी की तेज धार में उफनते पानी के बीच लाइफ जैकट पहनकर छोटी सी डोंगी को खेने का अनुभव बिना महसूस किए समझा नहीं जा सकता। तीस्ता व रांगित, दोनों ही नदियां राफ्टिंग के लिए उपयुक्त हैं। तीस्ता में शुरुआत माखा से की जा सकती है और यहां से नदी की धार में आप सिरवानी व मामरिंग होते हुए रांगपो तक जा सकते हैं। वहीं रागिंत नदी में सिकिप से शुरुआत करके जोरथांग व माजितार के रास्ते मेल्लि तक जाया जा सकता है। ज्यादा दिलेर व अनुभवी लोगों के लिए कयाकिंग का विकल्प भी है। राफ्टिंग व कयाकिंग के लिए अक्टूबर से दिसंबर तक का समय सबसे ज्यादा मुफीद है जब नदियां अपने पूरे यौवन पर होती हैं।

ट्रैकिंग : सिक्किम में रोमांच राफ्टिंग के अलावा ट्रैकिंग का भी है। दरअसल राज्य तेजी से ट्रैकिंग का नया बेस बनता जा रहा है। मन व शरीर साथ दे तो ट्रैकिंग के जरिये शायद आप धरती के इस खूबसूरत हिस्से को ज्यादा नजदीकी से देख-समझ सकेंगे। कभी स्तूपों व मठों से गुजरते हुए तो कभी प्रकृति की अद्भुत छटा को निहारते हुए, कभी अचानक ही मिल गए हिरण के पीछे भागते हुए तो कभी किसी ग्रामीण से कंचनजंघा के बारे में दंतकथाएं सुनते हुए आप खुद को एक अलग ही रहस्यमय दुनिया में महसूस करेंगे। यूं तो ट्रैकिंग का असली मजा ही खुद रास्ते खोजने व बनाने का है लेकिन फिर भी सुहूलियत के लिए यहां कई स्थापित ट्रैक हैं।

मार्च से मई और फिर अक्टूबर से दिसंबर के बीच पेमायांग्शे से रालंग तक मोनेस्टिक ट्रैक होता है। इसी तरह मार्च-मई में नया बाजार से पेमायांग्शे तक रोडोडेंड्रोन ट्रैक होता है। कंचनजंघा ट्रैक मध्य मार्च से मध्य जून तक और फिर अक्टूबर से दिसंबर तक युकसोम से शुरू होता है और राठोंग ग्लेशियर तक जाता है। बौद्ध धर्म में रुचि रखने वालों के लिए अक्टूबर से दिसंबर तक रूमटेक से युकसोम तक कोरोनेशन ट्रैक होता है।

डोगंरी से होने वाली याक सफारी, उत्तर व पश्चिम सिक्किम में माउंटेन बाइकिंग और युनथांग व जोरथांग में हैंग ग्लाइडिंग सिक्किम में रोमांच तलाशने वालों के लिए अन्य आकर्षण हैं। एक बात और, सिक्किम में हेलीकॉप्टर सेवा खाली बागडोगरा से लाने-ले जाने के लिए ही नहीं है बल्कि वह कंचनजंघा समेत हिमालय के पर्वतों का आकाश से विहंगम दृश्य भी कराती है।

ध्यान रखने की एक बात और है, तीन तरफ की सीमाएं तीन देशों से लगी होने से इस राज्य के कई इलाके ऐसे हैं जहां जाने के लिए परमिट की जरूरत होती है।

राज्य के उत्तरी जिले में शूल्हाखांग नाम का प्रसिद्ध बौद्ध मठ हैं जहां दुर्लभ बौद्ध ग्रंथ और 'थंकाओं' का संग्रह है। थंका उन विशाल कसीदाकारी किए हुए कपड़ों को कहते हैं जिनपर बौद्ध मंत्र उकेरे हुए होते हैं। इसके अलावा नामग्याल इंस्टीट्यूट ऑफ टिबेटोलाजी व इन्चे मठ भी हैं। छोगमो झील गंगटोक से महज 40 किमी की दूरी पर स्थित है। अंडाकार यह झील 12 हजार 4 सौ फीट की ऊंचाई पर स्थित है। झील के रास्ते में ही क्योंगनोसला अभयारण्य है। यह क्षेत्र रेड पांडा के साथ-साथ कई आकर्षक पक्षियों का आरामगाह भी है।

गंगटोक से 56 किमी की दूरी और समुद्रतल से 14 हजार 2 सौ फीट की ऊंचाई पर स्थित नाथुला दर्रा एक समय चीन के लिए प्रसिद्ध अंतरराष्ट्रीय वाणिज्यिक मार्ग हुआ करता था। इस समय यहां सीमा पर केवल भारत व चीन की सेना चौकियां हैं। नाथुला केवल भारतीय पर्यटकों के लिए बुधवार, बृहस्पतिवार, शनिवार व रविवार को खुला रहता है। पर्यटकों को यहां जाने के लिए परमिट लेना पड़ता है। गंगटोक से 24 किलोमीटर दूर प्रेरणा श्रोत रूमटेक मठ स्थित है, जिसे विश्व धर्म चक्र केंद्र और तिब्बती बौद्धों की कग्यूपा धारा के प्रणेता ग्याला कर्मापा का निवास माना जाता है। इस मठ की गिनती विश्व प्रसिद्ध बौद्ध मठों में की जाती है।



उत्तर सिक्किम, मंगन व आसपास

गंगटोक शहर की उत्तर दिशा की ओर बढ़ने पर हम उत्तर जिले में प्रवेश करते हैं जिसका मुख्यालय मंगन है। संभवतया यह सभी जिलों में सबसे खूबसूरत है। खानचेन जोंगा या कंचनजंघा के पर्वत शिखर की गोद में लिपटा यह जिला काफी ऊंचाई पर स्थित है, जहां के लेप्चा किसान बड़े पैमाने पर बड़ी इलायची की खेती करते हैं। यहां मुख्य रूप से दो ही समुदाय के लोग निवास करते हैं। इनमें लेप्चा सिक्किम की आदि जाति मानी जाती है और भूटिया समुदाय के लोग काफी पहले तिब्बत से आकर यहां बस गए। इस मनोहारी क्षेत्र में स्थित छोल्हमू नामक प्राकृतिक झील समुद्र तल से करीब 17 हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित है। इसी तरह तीस्ता नदी का उद्गम स्थल यमशों झील 16 हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित है। यूमथांग को इसे सिक्किम का स्विट्जरलैंड भी कहा जाता है। समुद्र तल से करीब 11 हजार 8 सौ फीट की ऊंचाई पर स्थित यह इलाका फूलों की घाटी के रूप में विश्व प्रसिद्ध है। गुरु डोंग्मार झील 17,100 फीट की ऊंचाई पर स्थित है।



पश्चिम सिक्किम, गेजिंग और आसपास
यह जिला अपनी गगन चुंबी पर्वतमालाओं और रोग निवारक दिव्य गुणों से युक्त झीलों व उष्ण जल कुंडों के लिए विख्यात है। अगर सिक्किम में आप रोमांच की तलाश में आ रहे हैं तो यह जिला सबसे उपयुक्त है। हिमालय के लिए सभी ट्रैक इसी जिले से निकलते हैं। 17 सौ मीटर की ऊंचाई पर स्थित यूकसोम सिक्किम के राजघराने की पहली राजधानी थी और यहीं पर प्रथम चौग्याल (राजा) का राज तिलक हुआ था। पश्चिम सिक्किम पुराने और पवित्र बौद्ध गुम्बाओं के लिए भी मशहूर है।

17वीं सदी में निर्मित पेमायांग्शे गुंबा निंग्मापा बौद्ध संप्रदाय का सबसे पवित्र और पुराना धर्मस्थल है। एक समय था जब केवल इसी मठ के बौद्ध भिक्षु चोग्याल शासकों का राज्याभिषेक करने के अधिकारी थे। खेच्योपालरी झील सिक्किम की सर्वाधिक पवित्र मानी जाने वाली झील है, जिसके प्रति बौद्ध व हिन्दू दोनों धर्मावलम्बी अत्यंत श्रद्धा रखते हैं। यह आकर्षक झील गेजिंग व यूकसोम के बीच स्थित है। खेच्योपालरी का स्थानीय भाषा में अर्थ है मनोकामना पूरी करने वाली झील। इसके चारों तरफ घने जंगलों से भरे पहाड़ है, जहां वन्य प्राणी रमण करते हैं।



दक्षिण सिक्किम,नाम्ची और आसपास

जिले का मुख्यालय नाम्ची में स्थित है। यहां राज्य के कुछ सबसे पुराने मठ मौजूद हैं। यह जिला टेमी टी के हरे-भरे चाय बागानों और अपनी प्राकृतिक संपदा के लिए विख्यात है। नाम्ची का शाब्दिक अर्थ है गगन चुंबी। समुद्र तल से 5500 फीट की ऊंचाई पर स्थित यह शहर एक व्यस्त व्यापारिक केंद्र है। नाम्ची से 14 किमी उत्तर में स्थित है बायोडाइवर्सिटी पार्क। जैव विविधताओं को दर्शाने वाला यह पूरे देश में अपने तरह का अनोखा उद्यान है।

Tuesday, January 26, 2010

झिनना जंगल कैंप (दिसंबर 2005)

छुट्टियों का आनंद जंगल के बीच
पन्ना टाइगर रिजर्व में मौजूद जंगल कैंप में ठहर कर वहां जंगली पशुओं को देखने का अलग ही रोमांच है
नए दौर में सैर-सपाटे के शौकीन लोग नई जगहें तलाश रहे हैं, नए रास्तों पर भटक रहे हैं। पुराने जमे-जमाए भीड़ भरे हिल स्टेशनों के बजाय रोमांचक या सुकून वाले स्थान खोज रहे हैं। भारत में प्राकृतिक रूप से इतनी विशालता और विविधता है कि देश के हर कोने में ऐसी सैकड़ों जगहें छिपी हैं जो अभी लोगों की पहुंच से अछूती हैं। मध्य प्रदेश में पन्ना जिले के घने जंगलों में स्थित झिनना जंगल कैंप ऐसी ही जगह है।


टाइगर देखने का रोमांच

पन्ना दो बातों के लिए प्रसिद्ध है - एक तो हीरे की खान और दूसरा टाइगर रिजर्व। एक तरफ जहां राजस्थान में सरिस्का व रणथंबौर जैसे टाइगर रिजर्व तेजी से लुप्त हो रहे बाघों के लिए चर्चा में हैं, वहीं पन्ना उन अभयारण्यों में है जहां अभी भी आसानी से बाघ देखे जा सकते हैं। पिछले सेंसस में यहां बाघों की संख्या तीस से ज्यादा आंकी गई थी।

जंगल में मंगल

यहां आप बाघ के अलावा भालू, जंगली सुअर, लकड़बग्घा, भेडि़या, सियार आदि भी देख सकते हैं। बारहसिंगों, सांभर, नीलगायों आदि की तो यहां भरमार है। पन्ना टाइगर रिजर्व के सामने आरक्षित वनक्षेत्र है। यहां वे सभी जानवर मिल जाते हैं जो रिजर्व में पाए जाते हैं। इसी जंगल में राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 75 से 16 किमी अंदर है झिनना जंगल कैंप। इसका सबसे रोमांचकारी पहलू यही है कि यहां कैंप के आसपास दूर-दूर तक घना जंगल है। दिन में टाइगर रिजर्व की सैर के बाद रात में आप नाइट सफारी का मजा ले सकते हैं। सांभर, नीलगाय, सियार व जंगली सुअर यहां दिन में भी देखे जा सकते हैं। किस्मत बुलंद हो तो अंधेरा होते -होते आप कैंप के पास लड़ते भालू भी देख सकते हैं, पर डरने की जरूरत नहीं। कैंप किसी भी जंगली जानवर के हमले से पूरी तरह

महफूज है।

किफायती और सुविधाजनक

झिनना जंगल कैंप में रहने का आनंद भी जंगल जैसा है। यहां तीन कॉटेज हैं और बाकी टेंट। बिजली-पानी की सुविधा भी पूरी तरह दुरुस्त है। खाने के लिए लजीज बुंदेली व्यंजन और किराया महज एक सस्ते होटल बराबर यानी कॉटेज का पांच सौ और टेंट का तीन सौ रुपये तक।

करने को बहुत कुछ

यह जंगल कैंप पन्ना टाइगर रिजर्व से 18 किमी और खजुराहो से लगभग 40 किमी दूर है। खजुराहो से इस कैंप तक साइकिल ट्रैक तैयार करने की योजना है। कैंप में टिक कर यहां से ट्रेकिंग के लिए भी तीन-चार ट्रैक हैं। बच्चों के लिए यहां दिन में बर्ड वाचिंग की योजना बनाई जा सकती है। यह क्षेत्र कई किस्म के पक्षियों का बसेरा है। नन्हे-मुन्नों को तो यहां कैंप में बने ट्री हाउस में भी खासा मजा आएगा। कुछ ही माह पहले वन विभाग ने यहां मोगली उत्सव भी कराया था।

कैंप की पूरी जिम्मेदारी बुंदेलखंड के इस इलाके में रह रहे जनजातीय लोगों के हाथ में है। यह कैंप राज्य सरकार और विश्व बैंक की डीपीआईपी परियोजना के तहत चार साल पहले स्थापित किया गया था। इतने कम समय में यह कैंप देश-विदेश के कई सैलानियों के लिए नियमित पर्यटन स्थल बन गया है।