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Sunday, May 27, 2012

चायल: सुकून भरी खूबसूरती

शिमला या कुफरी जैसी जगह पर आप जब भी जाओ, सैलानियों का अथाह सैलाब मिलेगा। कई बार सोचकर हैरानी होती है कि इतनी भीड़ में भला कोई घूमने का क्या लुत्फ लेगा। फिर, अगर आप कसौली या चायल जैसी जगह पर चले जाएं तो यह धारणा और मजबूत हो जाती है कि वाकई छुट्टियों के नाम पर यदि सुकून चाहिए हो तो शिमला से परे भी कई जगहें हैं। चायल तो खैर शिमला से बहुत दूर भी नहीं है।

चायल इस बात का भी नमूना है कि कैसे साख की लड़ाई में खूबसूरत जगहें बस जाया करती हैं। चायल पहले महज एक खूबसूरत सा पहाड़ी गांव रहा होगा। 19वीं सदी के आखिरी दशक में इसकी तकदीर बदली। भारत में ब्रिटिश सेनाओं के कमांडर की बेटी से प्रेम की पींगें बढ़ाने के मुद्दे पर पटियाला के महाराजा भूपिंदर सिंह के शिमला में घुसने पर अंग्रेजों ने रोक लगा दी। महाराजा के मान को इतनी ठेस लगी कि उन्होंने शिमला में अंग्रेजों की शान को चुनौती देने की ठान ली। नतीजा यह हुआ कि शिमला की निगाहों में लेकिन उससे ज्यादा ऊंचाई पर महल बनाने की जिद ने चायल को बसा दिया। इस तरह चायल ऊंचाई में शिमला से ऊंचा है और चायल से शिमला को देखा जा सकता है। मजेदार बात यह है कि महाराजा भूपिंदर सिंह को चायल कुछ समय पहले अंग्र्रेजों ने ही तोहफे में दिया था। उससे पहले चायल तत्कालीन केउथल एस्टेट का हिस्सा था। चायल तीन पहाडिय़ों पर बसा हुआ है। चायल पैलेस राजगढ़ हिल पर है, जबकि रेजीडेंसी स्नो व्यू पंढेवा पहाड़ी पर है। कभी इसका मालिकाना एक ब्रिटिश नागरिक के पास था। तीसरी पहाड़ी सब्बा टिब्बा पर चायल शहर बसा हुआ है।

रात में केवल शिमला ही नहीं, बल्कि कसौली शहर की भी रोशनियां चायल से बड़ी मनोहारी लगती हैं। चायल में शिमला जैसी भीड़ नहीं, दरअसल वह उतना बड़ा भी नहीं। इसलिए यहां शांति है, सुकून है, तसल्ली है। चायल से सामने दूर तक फैली घाटी का नजारा बेहद खूबसूरत है, जो शायद शिमला में भी नहीं मिलता। इसी घाटी में सतलज नदी बहती है। गर्मियों में चीड़ के पेड़ों से बहकर आती हवा ठंडक का अहसास देती है। पतझड़ में पीले पत्तों से ढकी घाटी मानो सुनहरा रंग ओढ़ लेती है। सर्दियों में यही समूची घाटी बर्फ से लकदक सफेद नजर आती है। हर मौसम का अलग रूप।



क्या देखें

चायल में महाराजा पटियाला का पैलेस, वहां का सबसे बड़ा आकर्षण है। सौ साल से भी पुराना यह महल अब होटल में तब्दील हो चुका है। किसी समय देश के सबसे संपन्न राजघराने रहे पटियाला का वैभव व शानो-शौकत आज भी इस पैलेस में साफ नजर आती है।

चायल में 7250 फुट की ऊंचाई पर स्थित दुनिया का सबसे ऊंचा क्रिकेट मैदान भी है। खूबसूरत और चीड़ व देवदार के पेड़ों से घिरा हुआ। हालांकि यह कोई अलग स्टेडियम नहीं बल्कि चायल के मिलिटरी स्कूल का खेल का मैदान है, लेकिन चायल आने वाले सैलानियों के लिए बड़ा आकर्षण। खेल का यह मैदान, पोलो के लिए भी इस्तेमाल आता है और इस लिहाज से यह दुनिया में सबसे ऊंचा पोलो का भी मैदान है।

चायल में दस हजार वर्ग हेक्टेयर इलाके में फैला आरक्षित वनक्षेत्र भी है। इस चायल सैंक्चुअरी में घोरल, सांभर, बार्किंग डीयर व रेड जंगल फाउल समेत कई छोटे जानवर व पक्षी हैं। कभी-कभार तेंदुए यहां देखने को मिल जाते हैं। आधी सदी पहले महाराजा पटियाला ने यहां यूरोपीयन रेड डीयर भी लाकर छोड़े थे। उनमें से भी कोई बचा-खुचा कभी देखने को मिल जाता है क्योंकि उनका अस्तित्व यहां खतरे में है। इसमें जानवर देखने के लिए कई जगह मचान भी बने हैं। इसी तरह इलाके में कई जगह फिशिंग लॉज भी बने हुए हैं। चायल से 29 किलोमीटर दूर गौरा नदी में शौकीन लोग मछली पकडऩे जाते हैं।

चायल में देवदार के पेड़ों के बीच से जंगल में सैर करने का भी अलग आनंद है। आस-पास के गांवों, गौरा नदीं या सतलज के लिए आप यहां से छोटे-छोटे ट्रैक भी कर सकते हैं। सिरमौर जिले में लगभग 12 हजार फुट ऊंची चूड़ चांदनी चोटी के लिए भी यहां से ट्रैक किया जा सकता है। इसे चूड़ चांदनी इसलिए कहा जाता है क्योंकि चांदनी रातों में यहां का ढलान चांदी की चूडि़यों जैसा दिखाई देता है। ऊपर से आसपास का नजारा अद्भुत होता है।

चायल की लोकप्रिय जगहों में से एक सिद्ध बाबा का मंदिर है। कहा जाता है कि महाराजा भूपिंदर सिंह पहले अपना महल उसी जगह पर बनवाना चाहते थे, जहां आज यह मंदिर है। जब महाराजा को यह पता चला कि उसी जगह पर सिद्ध बाबा ध्यान किया करते थे तो भूपिंदर सिंह ने महल थोड़ी दूर बनवाया और उस स्थान पर सिद्ध बाबा का मंदिर बनवाया।

चायल अपने मिलिट्री स्कूल के लिए भी प्रसिद्ध है। यह स्कूल शुरू तो अंग्रेजों ने आजादी से कई साल पहले किया था। पहले यह सिर्फ सेना के अफसरों के बच्चों को सैन्य इम्तिहानों के लिए तैयार करने के इरादे से मुफ्त शिक्षा देने के लिए था। धीरे-धीरे इसके स्वरूप में बदलाव आता गया। आजादी के बाद आम लोगों के बच्चों को भी फीस देकर यहां पढ़ने की इजाजत दी गई।

तोशाली हिमालयन व्यू
दूरी

चायल के लिए कालका से शिमला के रास्ते में कंडाघाट से रास्ता अलग होता है। शिमला से आना चाहें तो कुफरी तक आकर वहां से कंडाघाट वाला रास्ता पकड़ लें तो चायल पहुंच जाएंगे। कुफरी से चायल 23 किलोमीटर दूर है और शिमला से 45 किलोमीटर दूर।
कहां व कैसे

चायल बहुत छोटा शहर है। अभी यहां सैलानियों व लोगों की उस तरह की मारामारी नहीं है। इसलिए होटल भी कम है। महाराजा पटियाला का चायल पैलेस यहां का सबसे बड़ा और आलीशान होटल है। लेकिन यहां कमरे व कॉटेज अलग-अलग कई बजटों के लिए हैं। बाकी होटल मिले-जुले बजट के हैं। गर्मियों में जब सैलानी बढऩे लगते हैं तो लोग कंडाघाट से चायल के रास्ते में साधू-पुल और कुफरी से चायल के रास्ते में शिलोनबाग व कोटी में भी ठहरते हैं। शिलोनबाग में तोशाली हिमालयन व्यू जैसे रिजॉर्ट सुकूनभरी छुट्टियां बिताने के लिए बेहतरीन हैं, जहां आप आपने कमरों से मानो घाटी को छू सकते हैं। दरअसल शिमला में सैलानियों की भीड़ के चलते एकांत के इच्छुक लोग शिमला के बजाय बाहर के इलाकों में रुककर वहां से शिमला, कुफरी, फागु, चायल वगैरह देखना पसंद करते हैं। इसीलिए कंडाघाट से कुफरी का रास्ता होटलों के नए ठिकाने के रूप में खासा लोकप्रिय हो रहा है।

1 comments:

Cho co said...

India tourist visa holders often love to travel via trains across India. インドのビザ