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Saturday, June 8, 2013

जय बर्फानी बाबा


अपनी विलक्षणता, पौराणिकता और कष्टसाध्यता के कारण अमरनाथ यात्रा को भारत की सबसे महत्वपूर्ण तीर्थयात्राओं में माना जाता है। तीर्थाटन में इसकी महत्ता कैलास यात्रा और चारधाम यात्रा के समकक्ष ही है। मुश्किल रास्ते और प्रतिकूल मौसम के बावजूद यहां जाने वाले लोगों की संख्या में साल-दर-साल हो रहा इजाफा इस बात का गवाह है


Amarnath Cave
 कश्मीर की खूबसूरत लिद्दर घाटी के सुदूर किनारे पर एक संकरी खाई में बसे हैं बाबा अमरनाथ। गुफा में बर्फ के लिंग के रूप में स्थित महादेव शिव का यह स्थान समुद्र तल से 3888 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। बर्फ का यह शिवलिंग पूरी तरह प्राकृतिक है और कहा जाता है कि चंद्रमा के घटने-बढ़ने के साथ ही यह शिवलिंग भी घटता-बढ़ता है। मुख्य लिंग के अगल-बगल ही बर्फ के दो और शिवलिंग हैं जो देवी पार्वती और गणेश के प्रतीक हैं। इस गुफा के धार्मिक-पौराणिक इतिहास के बारे में कई कथाएं प्रचलित हैं।

साल के ज्यादातर समय यह जगह बर्फ से घिरी रहती है और लिहाजा यहां पहुंचना लगभग नामुमकिन सा होता है। गर्मियों में बर्फ के पिघलने के बाद यहां जाने का रास्ता खुलता है। हर साल ज्येष्ठ-श्रावण के महीनों में यहां यात्रा होती है। हर साल यात्रा की अवधि भी कम ज्यादा होती रहती है। यात्रा की अवधि, इंतजामों और यात्रियों की मौत को लेकर पिछले कई सालों से यात्रा चर्चा में रही है। वैष्णो देवी की ही तरह अमरनाथ के लिए भी अलग से श्राइन बोर्ड बना हुआ है जो यात्रा के सारे इंतजाम देखता है। इस साल यात्रा 28 जून से शुरू होगी और कुल 55 दिन तक चलेगी। रक्षाबंधन के दिन 21 अगस्त को छड़ी मुबारक के अमरनाथ पहुंचते ही यात्रा संपन्न हो जाएगी। पिछले कुछ सालों में यात्रियों की मौत का मसला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचने के बाद इस बार किसी भी व्यक्ति का हेल्थ सर्टीफिकेट के बगैर यात्रा के लिए रजिस्ट्रेशन नहीं किया जाएगा। यात्रा के लिए हर व्यक्ति को रजिस्ट्रेशन कराना जरूरी है और इस साल के लिए रजिस्ट्रेशन की प्रक्रिया 18 मार्च से पहले ही शुरू हो चुकी है। रजिस्ट्रेशन की एक तय प्रक्रिया है। साथ ही हर रूट पर किसी भी दिन जाने वाले यात्रियों की भी एक तय संख्या है। रजिस्ट्रेशन का जिम्मा देशभर में कई बैंकों के पास है और उनके पास हर रूट व हर तारीख का एक कोटा है। इसके अलावा इस साल यह भी तय किया गया है कि 13 वर्ष से कम और 75 वर्ष से ज्यादा उम्र के किसी भी व्यक्ति को इस साल यात्रा पर जाने की इजाजत नहीं होगी। इसी तरह छह हफ्ते या उससे ज्यादा के गर्भ वाली किसी महिला को भी यात्रा पर नहीं जाने दिया जाएगा।

कैसे जाएं


Traditional route to Amarnath caves goes through Pahalgam and Chandanwari
 अमरनाथ यात्रा जाने के दो रास्ते हैं- पहला, पहलगाम से होकर और दूसरा सोनमर्ग से होकर। दोनों ही रास्तों के लिए पहले ट्रेन, बस अथवा हवाई जहाज से जम्मू या श्रीनगर पहुंचना होता है। उसके बाद आप पहलगाम या सोनमर्ग जा सकते हैं। उसके बाद अमरनाथ गुफा तक का आगे का सफर पैदल, खच्चर पर या पालकी में किया जा सकता है। पहलगाम का रास्ता बेस कैंप चंदनवाड़ी, पिस्सू टॉप, शेषनाग व पंजतरणी होते हुए गुफा तक पहुंचता है। जबकि सोनमर्ग का रास्ता बालटाल से सीधा गुफा तक ले जाता है। पहलगाम वाले रास्ते में आने-जाने में पांच दिन का वक्त लग जाता है। वहीं बालटाल से गुफा तक एक दिन में पहुंचा जा सकता है। 14 किलोमीटर का यह रास्ता खड़ी चढ़ाई वाला है। फिट लोग इस रास्ते पर बालटाल से जल्दी चढ़ाई शुरू करके उसी दिन दर्शन करके नीचे लौट आते हैं। इस रास्ते पर बालटाल और पहलगाम वाले रास्ते पर चंदनवाड़ी से आगे किसी भी व्यक्ति को यात्रा परमिट और स्वास्थ्य प्रमाणपत्र के बगैर जाने की इजाजत नहीं है। वहीं यात्रा के लिए हेलीकॉप्टर की सुविधा भी है। यात्रा के दौरान बालटाल और पहलगाम, दोनों ही जगहों से पंजतरणी तक होलीकॉप्टर की उड़ानें उपलब्ध रहेंगी। बालटाल से पंजतरणी तक का इकतरफा किराया 1500 रुपये और पहलगाम से पंजतरणी तक का इकतरफा किराया 2400 रुपये तय किया गया है। हेलीकॉप्टर के टिकट के लिए ऑनलाइन बुकिंग कराई जा सकती है। जो हेलीकॉप्टर से अमरनाथ जाना चाहते हैं, उन्हें अलग से रजिस्ट्रेशन कराके यात्रा परमिट भी लेने की जरूरत नहीं है। हेलीकॉप्टर का टिकट उसके लिए पर्याप्त है।

पहलगाम और सोनमर्ग, दोनों ही स्थानों पर रुकने के लिए कई होटल व रिजॉर्ट हैं। वहीं, आगे यात्रा मार्ग पर यात्रियों के लिए कैंप व खाने-पीने के पर्याप्त इंतजाम होते हैं। मणिगाम, बालताल व पंजतरणी में डेढ़ सौ से लेकर पांच सौ रुपये तक में रुकने की सुविधा मिल जाती है। यात्रा के दौरान खच्चरों व पालकियों के रेट भी तय हैं। आपको बस मौसम व थकावट से जूझने के लिए उत्साह, जीवट, शारीरिक क्षमता और जरूरी कपड़े-दवाइयां चाहिए होते हैं।

Saturday, June 1, 2013

ये वादियां मेरा दामन

कश्मीर में श्रीनगर, गुलमर्ग, सोनमर्ग व पहलगाम से आगे भी बहुत कुछ है। दरअसल कश्मीर में आप जिस ओर निकल जाएं, खूबसूरत वादियां पसरी पड़ी हैं, सब एक से बढ़कर एक। इनमें से बहुत कम से ही हम वाकिफ हैं। इस बार कश्मीर जाएं तो ऐसी ही किसी नई वादी में जाएं, जो अब तक देखी न हो। इन्हीं में से एक यूसमर्ग की सैर इस बार।



Yousmarg is in no way less than Sonmarg or Pahalgam
 कश्मीर के लोग एक बड़ी मजेदार बात कहते हैं। कहने को श्रीनगर पहाड़ है और जम्मू मैदान, लेकिन जम्मू शहर पहाड़ी पर बसा है और जम्मू से सड़क के रास्ते श्रीनगर आएं तो पूरा रास्ता पहाड़ी है। जैसे ही काजीगुंड के बाद श्रीनगर की ओर बढ़ते हैं तो सत्तर किलोमीटर का आगे का पूरा रास्ता सपाट है, मानो आप मैदान में सरपट रेस लगा रहे हों। यही हाल श्रीनगर से आप कहीं भी जाएं तो मिलेगा। श्रीनगर से पहलगाम तक मैदान ही मैदान है। गुलमर्ग के रास्ते में तनमर्ग तक सपाट मैदान है।


Beautiful slopes of Yousmarg with pine forests all around
 कश्मीर की खूबसूरती ही इतनी ऊंचाई पर फैली इतनी शानदार सपाट घाटी से है। उसके बाद इस घाटी में जहां-जहां नदियों के साथ-साथ रास्ते पहाड़ से मिलते हैं, वहां का नजारा बदल जाता है। इसके अलावा पहाडि़यों की ऊंचाइयां नापने के बाद फिर वैसी ही लंबी दूर तक फैली घाटियां और मैदान देखना, बेहद सुखद है। गुलमर्ग व सोनमर्ग का नजारा कुछ ऐसा ही है- इतनी ऊंचाई पर देवदार की घनी कतारों के बीच खुला मैदान, हमारे उत्तराखंड के बुग्यालों से कई गुना बड़े। लेकिन कश्मीर में यह खूबसूरती केवल गुलमर्ग व सोनमर्ग तक ही नहीं सिमटी है। वहां लोग ज्यादा गए, इसलिए उन्हें शोहरत ज्यादा मिल गई। लेकिन जगहें और भी हैं।

यूसमर्ग ऐसी ही एक बेइंतहा खूबसूरत जगह है। गुलमर्ग की बाईं तरफ की पहाडि़यों में बडगाम जिले में स्थित यूसमर्ग श्रीनगर से 47 किलोमीटर दूर है। श्रीनगर से इसका रास्ता बडगाम व चरारे शरीफ होकर जाता है। चरारे शरीफ दरगाह में कश्मीर के सूफी संत हजरत शेख नूर-उद-दीन नूरानी की मजार है। यहां से यूसमर्ग महज 13 किलोमीटर दूर है। श्रीनगर से इस सफर में दो घंटे का वक्त लगता है। यह रास्ता भी कम खूबसूरत नहीं। यूसमर्ग में दूर तक फैला हरा मैदान है। उसके पीछे चीड़ के घने जंगल और उनके पीछे से झांकती बर्फ से लदी चोटियां। यहां का नजारा मंत्रमुग्ध कर देने वाला है।

Doodh Ganga flowing just a few hundred metres from Yousmarg
कश्मीर की बाकी जगहों की ही तरह यहां की भी यही खासियत है कि आप चाहें तो यहां कई दिन केवल सुकून में बिता सकते हैं और चाहें तो करने को इतना कुछ है कि कई दिन की जरूरत पड़े। यूसमर्ग के आसपास कई जगहें देखी जा सकती हैं। वहां ट्रैक करके भी जाया जा सकता है और खच्चर पर सवारी करके भी। यूसमर्ग से सबसे निकट दूधगंगा है। लगभग दो किलोमीटर की यह दूरी आसानी से ट्रैक करके पूरी की जा सकती है। जगह का नाम दूधगंगा पहाड़ से आती नदी में चट्टानों से टकराने के बाद दूध सरीखे झाग बनने की वजह से पड़ा। नदी का यह किनारा बहुत खूबसूरत है। नदी की धार के साथ आगे चले जाएं तो नीचे नदी नीलनाग नामक झील में पहुंचती है। यह झील पहाड़ी की गोद में है और अपने नीले साफ पानी की वजह से नीलनाग कहलाई जाती है। हालांकि यहां खच्चर से जाने का रास्ता और सड़क से जाने का रास्ता अलग है। दूधगंगा में पानी संग सफेद नामक चोटी से आ रहा है। पास ही में टट्टा कुट्टी नामक एक और चोटी भी है। यूसमर्ग से संग सफेद के लिए दो दिन का ट्रैक भी किया जा सकता है। इसके अलावा यूसमर्ग से फ्रेसनाग, हालीजान, बरगाह, लिद्दर मड व त्रिसूर भी जाया जा सकता है। यूसमर्ग से ठीक पहले पहाडि़यों से आने वाला पानी रोककर एक बंध बना दिया गया है जिससे वहां एक खूबसूरत जलाशय बन गया है।


Reservoir close to Yousmarg
 चूंकि यूसमर्ग श्रीनगर से महज दो ही घंटे के रास्ते पर है, इसलिए सैलानी श्रीनगर से यहां सवेरे आकर शाम को लौट भी सकते हैं और चाहें तो यहीं रुक भी सकते हैं। यकीनन, अगर आसपास की जगहें देखनी हों तो यहां रुकना ही सही होगा। और यह जगह है भी ऐसी कि यहां आकर लौटने का मन जल्द करेगा नहीं। हालांकि यूसमर्ग में अभी सोनमर्ग व गुलमर्ग जैसी होटलों और रिजॉर्ट की भरमार नहीं है लेकिन वहां रुकने की सुविधाएं हैं। जम्मू-कश्मीर टूरिज्म और जेकेडीटीसी के भी रेस्ट हाउस हैं। वह दिन दूर नहीं जब यहां भी सैलानी उमड़ने लगेंगे।